हिंदी कवितायें
-
‘लौटकर आना साथी’- हिंदी कविता- PAMIT Hindi Poems
लौटकर आना साथी तुम्हें यहीं मिल जाउंगा मैं वहीं मिल जाउंगा हम, जहाँ अलग हुए थे, या बिछड़ गए थे, और, वक्त से कुछ पिछड़ गए थे। Continue reading
-
‘क्या-क्या नहीं सृष्टा ने उसको दिया’- हिंदी कविता- PAMIT Hindi Poems
समय की चाल तय है, वह ग्रस लेगा उसे, अनिश्चित है कब, कहाँ, यह व्याल डस लेगा उसे। बाजार की भीड़ में वह खुद दांव पर है, नहीं पता उसे, वह समूचा मामूली भाव पर है। Continue reading
-
शरद पूर्णिमा- शरद चांदनी बरसी अँजुरी भर कर पी लो
ऊँघ रहे हैं तारे सिहरी सरसी ओ प्रिय कुमुद ताकते अनझिप क्षण में तुम भी जी लो । Continue reading
-
मेरा देश क्या कुछ नहीं सहता- हिंदी कविता- PAMIT Hindi Poems
वह सहता है समय-समय पर,, होने वाले बम विस्फोटों को जाने कैसे चुप रह जाता है सह-सह कर विराट चोटों को। Continue reading
-
‘सन्नाटा’- हिंदी कविता- भवानीप्रसाद मिश्र
तुम डरो नहीं, वैसे डर कहाँ नहीं है, पर खास बात डर की कुछ यहाँ नहीं है बस एक बात है, वह केवल ऐसी है, कुछ लोग यहाँ थे, अब वे यहाँ नहीं हैं। Continue reading
-
‘शादी’- हिंदी हास्य-व्यंग्य कविता- PAMIT Hindi Poems
जो नहीं थीं पहले कभी, जिनका उदय नहीं हुआ था, उन्हीं समस्याओं के हल ढूँढ़ने को, शायद कोई व्यक्ति शादी किया करता है। वह न खाये जो खाना चाहता है,वहाँ न जाए जहाँ जाना चाहता है,कुछ ऐसी ही सुविधाएँ जो पाना चाहता है,उन्हीं सब के विशेष पैकेज हेतु,शायद कोई व्यक्ति शादी किया करता है। प्यार… Continue reading
-
मैं श्रद्धा से हिंदी के चरण छूता हूँ- हिंदी कविता- PAMIT Hindi Poems
मैं श्रद्धा से हिंदी के चरण छूता हूँ मैं उत्साह से उसके शब्दों से खेलता हूँ, मैं ध्यान से उसके अक्षर-अक्षर बोलता हूँ, मस्तक पर उसके मैं मुकुट धरता हूँ… Continue reading
-
‘मुझे काम करना है’- हिंदी प्रेम कविता- PAMIT Hindi Poems
तुम प्यार को कहीं रख दो अभी,मुझे काम करना है…भावनाओं को प्राण मत दो अभी, मुझे काम करना है…कुछ पहर ही हुए हैं, कई पहरों का काम है, यूँ देख मुझे, मेरा ध्यान मत लो अभी, मुझे काम करना है…मैं उस पल के लिये ही,इस कोशिश में हूँ, जिस पल, हमारा धैर्य पूर्ण हो जाए,… Continue reading
-
‘टूटा-बिखरा प्रेम’- हिंदी कविता-PAMIT Hindi Poems
कई वर्ष बीत चुके हैं, स्मृतियाँ भी पीत पड़ गई हैं, मेरी आवाज भी अब नहीं गूँजती, तुम्हारी आँखें भी सिकुड़ती है, मेरे हाथ भी दरारों से भरे हैं, हमारे चश्मों के अंक भी समान नहीं, अब आराम कुर्सी पर आराम होता है, इन सब टूटी-बिखरी बातों के बीच, मेरा तुमसे यह कहना, कि, ‘मुझे… Continue reading
-
हमें पैदा क्यों किया था?- हिंदी हास्य कविता- हरिवंशराय बच्चन
ज़िन्दगी और ज़माने की कशमकश से घबराकर मेरे बेटे मुझसे पूछते हैं कि हमें पैदा क्यों किया था? और मेरे पास इसके सिवाय कोई जवाब नहीं है कि मेरे बाप ने मुझसे बिना पूछे मुझे क्यों पैदा किया था? Continue reading
-
‘एक घटना घटी है’- हिंदी कविता- PAMIT Hindi Poetry
पर, प्राण जब देह से अलगाव कर, मंद-मंद भी उठते होंगे, तब प्राणी जग के हो भयभीत, क्या खुद में नहीं सिमटते होंगे? नियम हैं, किन्तु हैं बेहद क्रूर, काया समीप, व्यक्ति खो जाता, कहीं, दूर Continue reading
-
‘सखि, वे मुझसे कहकर जाते’- हिंदी कविता- ‘राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त’
स्वयं सुसज्जित करके क्षण में, प्रियतम को, प्राणों के पण में, हमीं भेज देती हैं रण में – क्षात्र-धर्म के नाते सखि, वे मुझसे कहकर जाते। Continue reading
-
दीवारों से निकली ईटें
छत को आश्चर्य है, कि कैसी नई-नई तरकीबें, उस तक जाने के लिये, बना ली गई हैं। Continue reading
-
‘पंथ होने दो अपरिचित’- हिंदी कविता- ‘महादेवी वर्मा’
अन्य होंगे चरण हारे, और हैं जो लौटते, दे शूल को संकल्प सारे। दुखव्रती निर्माण उन्मद, यह अमरता नापते पद बांध देंगे अंक-संसृति, से तिमिर में स्वर्ण बेला। Continue reading
-
‘यूँ तो साथ देने को’- हिंदी प्रेम कविता- ‘डॉ. जगदीश सोलंकी’
यूँ तो साथ देने को हजारों हाथ और है, पर तू जो संग में रहे तो तेरी बात और है। चंद आंसू क्या गिरे कि उम्र तक भिगो गए, दिल की धूल क्या उड़ी कि रास्ते ही खो गए, Continue reading
-
‘नीड़ का निर्माण फिर-फिर’- हिंदी कविता- ‘डॉ. हरिवंशराय बच्चन’
वह उठी आँधी कि नभ में छा गया सहसा अँधेरा, धूलि धूसर बादलों ने भूमि को इस भाँति घेरा, रात-सा दिन हो गया, फिर रात आई और काली, लग रहा था अब न होगा इस निशा का फिर सवेरा, Continue reading
-
चाँद, क्या यह पहली बार है?
और वह शरारत, छिप-छिपकर आ जाने की मेरी मुग्धता बढ़ाती है, मनु के अधिकार के बाहर यह प्रकृति तुम संग मिल कैसे-कैसे स्वांग रचाती है… Continue reading
-
‘दोस्ती’- हिंदी कविता- PAMIT HINDI POETRY
फूलों से भँवरे रूठे हैं, भँवरों के बहाने कई गज के हैं, कहते हैं कि फूल कागज के हैं। Continue reading
-
‘रोने की छवि’- हिंदी कविता- ‘श्रीमती सुभद्राकुमारी चौहान’
तुम कहते हो- मुझको इसका रोना नहीं सुहाता है, मैं कहती हूँ- इस रोने से अनुपम सुख छा जाता है। सच कहती हूँ, इस रोने की छवि को जरा निहारोगे, बड़ी-बड़ी आँसू की बूँदों पर मुक्तावली वारोगे। Continue reading
-
‘थोडे फासले पे होकर’- हिंदी गजल- PAMIT HINDI POEMS
औरों की ही तरह तुम हो जाओ तो, कोई हर्ज नहीं, लेकर अपना सब कुछ मुझसे, मुझे, फिर अकेला करना। Continue reading
-
‘वह पृष्ठ कोरा ही क्यों?’- हिंदी कविता- PAMIT HINDI POEMS
गंभीरतम सत्य जानने के बाद भी, वह गंभीर नहीं, पर्वतों-सी विपदाओं के आगे भी होते अधीर नहीं, कपोल-कल्पनायें भी जिनके समक्ष नतमस्तक हैं, बतलाओ मुझे, मुझमें उन कृष्ण की संभावना कहाँ तक हैं? Continue reading
-
‘हिरोशिमा’-हिंदी कविता-‘अज्ञेय’
मानव का रचा हुया सूरज मानव को भाप बनाकर सोख गया। पत्थर पर लिखी हुई यह जली हुई छाया मानव की साखी है। Continue reading
-
‘इतनी रंग बिरंगी दुनिया’- हिंदी कविता- ‘डॉ कुमार विश्वास’
ऐसे उजले लोग मिले जो, अन्दर से बेहद काले थे। ऐसे चतुर लोग मिले जो, मन से भोले भाले थे… Continue reading
-
‘अंधेरी कोठरियों से बात’- हिंदी कविता- PAmit Hindi Poetry
जब पहुँचा वहाँ तब अंधेरा देखा, मैंने कोठरियों में कुछ नहीं देखा, तम की रेखायें ही थीं, अलग-अलग आयामों में, उनका इतिहास बँटा होगा, कई-कई, कई नामों में,… Continue reading