‘मेरे हाथ टूट गए हैं…’- PAMIT Hindi Poems

अब कैसे लिखूँ कविताएं,
मेरे हाथ टूट गए हैं।

दो ही तो थे, जो,
लेकर आते थे पकड़ कर,
दृश्यों को, लोगों को,
मनमोहने वाली बातों को,
आखिर मैं बंधा ही हूँ कुछ
नियमों से, सबकी तरह
संदेह इस पर भी है
आखिर मैं मनुष्य ही तो हूँ।

वह जो अंतिम कविता थी न,
फाड़ डाली थी उस चिंटु ने,
और बना ली थी नाव
वो बारिश बहुत बुरी रही,
उस अज्ञानी चिंटु को एक बार
पढ़नी तो चाहिए थी कविता,
औऱ मुझे कुछ थपकियाँ पीठ पर,
पर नहीं, चूँकि सब लाये थे
अपनी-अपनी नाव, इसीलिये,
सोचे-समझे बिना ले गया
मेरी कविता, जो बहुत
सम्हालकर रख दी थी दराजों में,
अपने साथियों के लिये,

लेकिन अब कैसे लिखूं कविताएं,
मेरे हाथ टूट गए हैं।

-PAMIT Hindi

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“‘मेरे हाथ टूट गए हैं…’- PAMIT Hindi Poems” के लिए प्रतिक्रिया 6

    1. 😅jaroor koi takneeki samasya hogi…fir se prayas kijiye🙏

      hamari or se asuvidha ke liye khed hai…🙁

      Liked by 2 लोग

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