कई वर्ष बीत चुके हैं,
स्मृतियाँ भी पीत पड़ गई हैं,
मेरी आवाज भी अब नहीं गूँजती,
तुम्हारी आँखें भी सिकुड़ती है,
मेरे हाथ भी दरारों से भरे हैं,
हमारे चश्मों के अंक भी समान नहीं,
अब आराम कुर्सी पर आराम होता है,
इन सब टूटी-बिखरी बातों के बीच,
मेरा तुमसे यह कहना,
कि, ‘मुझे तुमसे प्रेम हैं,’
मुझे बहुत अजीब लगेगा,
और तुम्हें…?
-PAMIT Hindi
टिप्पणी करे