Hindi
-
‘अंधेरी कोठरियों से बात’- हिंदी कविता- PAmit Hindi Poetry
जब पहुँचा वहाँ तब अंधेरा देखा, मैंने कोठरियों में कुछ नहीं देखा, तम की रेखायें ही थीं, अलग-अलग आयामों में, उनका इतिहास बँटा होगा, कई-कई, कई नामों में,… Continue reading
-
‘चमत्कार’- हिंदी कविता- ‘अमृता प्रीतम’
ये भगवानों का देश है यहाँ सिर्फ चमत्कार होता है पसीना कितना भी बहा लो उसकी मर्ज़ी के बिना सब बेकार होता है अब देखो न किसान कितना भी अन्न उगा ले गरीबी ही झेलता है पर उसी अन्न को घर घर बेचने वाला रुपयों में खेलता है मज़दूर कितना भी पसीना बहा ले मज़बूर… Continue reading
-
‘चुप-चाप’- हिंदी कविता- ‘अज्ञेय’
चुप-चाप चुप-चाप झरने का स्वर हम में भर जाए, चुप-चाप चुप-चाप शरद की चांदनी, झील की लहरों पर तिर आए, चुप-चाप चुप चाप जीवन का रहस्य, जो कहा न जाए, हमारी, ठहरी आँख में गहराए, चुप-चाप चुप-चाप हम पुलकित विराट में डूबें, पर विराट हम में मिल जाए… चुप-चाप चुप-चाऽऽप… Continue reading
-
‘सब तुम्हारा ही है’- हिंदी कविता- PAmit Hindi Poems
मेरी कश्ती में है हौसला बहुत, कि उससे मिलने को बेक़रार, किनारा भी है कई सपने मेरे, इस सपने तले,टूटकर चूर हुए है,अब तुम जान ही लो,यह शख्स हत्यारा भी है महलों में रहता हूँ तो क्या, मन के किसी कोने में, एक खुश बंजारा भी है अधिक समेटो मत ख़ुशियाँ जहां की, सारे जहाँ… Continue reading
-
तब तब तृप्त हुआ हूँ- हिंदी कविता- PAmit Hindi Poems
जब-जब उसने कांधे पर रखकर, हाथ, कोई बात पूछी, या समय बिताने को ही बस, उसे कोई पहेली सूझी, या उसकी फूँक की हवा से मेरी, कोई चोट ठीक हुई है। तब तब तृप्त हुआ हूँ। जब-जब बच्चों के अनगढ़ मन के साथ उत्साह से खेला हूँ, या, जब किसी बच्चे का दोस्त बना, जिसने… Continue reading
-
‘आवाजाही’- हिंदी कविता- PAmit Hindi Poems
आवाजाही, साँसों की निरंतर चलती रहे, बस इसलिये कदमों की, बंद करनी पड़ी।आवाजाही, धड़कनों की नियमित रहे, बस इसलिये उद्योगों की, प्रबंधित करनी पड़ी।कुछ सोच रहे, कुछ, लोगों के लिये ही, क्यों ?हमें रफ्तार विकास की, मंद करनी पड़ी।स्वयं को रखकर, उनकी जगह, सोचेंगे तो, इतना कांप उठेंगे, कि रस्सियाँ भी स्वरूप बदल डराएंगी, और,… Continue reading
-
‘जलते दिये से जब ये पूछा कि’-हिंदी कविता- PAmit Hindi Poems
जलते दिये से जब ये पूछा कि ‘क्या ख्याल है तुम्हारा सूरज के बारे में,’ हँसा वह, बहुत हँसा हवा संग बहने लगा, साथ रख अपनी काया का,वापस आ कहने लगा,“एक दिया है वह भी”‘क्या एक दिया है सूरज!’ “हाँ एक दिया है, है लेकिन, विशाल, आधारहीन, कायारहित, इस अखिल ब्रह्मांड के, अंधकार की प्रचंडता… Continue reading
-
‘जीवन का हुलिया’- हिंदी कविता- PAmit Hindi Poems
दोस्तों, मुझे आपके अच्छे-बुरे-सुडौल-बेडौल-आसान-गूढ़, सभी प्रकार के कमेंट का इंतजार रहेगा। ‘मैंने हुलिया कहा था जीवन का मित्र! यह तुम क्या बना लाये हो लगता है किसी कागज पर केवल सादा-सा प्रकाश उतार लाये हो’, लाल-नीला-हरा-पीला, सब ही अनुपस्थित कोई न मिला तो श्वेत कर लाये हो, “श्वेत ही स्रोत है सब रंगों का, बाकी… Continue reading
-
‘मैं सिक्कों में बिकना चाहता हूँ’- हिंदी कविता- PAmit Hindi Poems
मैं सिक्कों में बिकना चाहता हूँ, ताकि बच्चे भी खरीद सकें, और पा सकें वृद्ध भी, बिना नुकसान के डर के,ले सकें मेरे मन को, तपते सूरज की धूप जैसे, अपने शरीर पर ऊर्जा की तरह, ले सकें मेरे मन को,राधाकृष्ण के महारास की, उस शीतल पूर्णिमा की तरह।मैं समेटकर उन सिक्कों को, फिर उन… Continue reading
-
‘बस इस सदी की ही बात है’- हिंदी कविता- PAmit Hindi Poems
बस इस सदी की ही बात है,फिर ये पंछी चहचहाएंगे नहीं,करना कोशिशें लाख मनाने की,वे तुमसे मिलने आएंगे नहीं। बस इस सदी की ही बात है,उलझा लो पतंगों को पेड़ पर, बाद में वे तुम्हें रुलाएंगे नहीं,और, रक्षा सूत्र भी कलाई पर बँधाएंगे नहीं। बस इस सदी की ही बात है,जलमग्न नहीं, अश्रुमग्न संसार हो… Continue reading
-
‘कुछ प्रश्न’- हिंदी कविता- PAmit Hindi Poems
‘काला’ होता है आखिरकितना ‘काला’?‘गोरा’ आखिर होता हैकितना ‘गोरा’?‘पूरा’ कितना ‘पूरा’ होता है?कितने ‘अँधेरे’ में ‘अँधेरे’ को रहना पड़ता है?कितनी ‘ऊँचाई’ पर ‘ऊँचे’ को चढ़ना होता है?किस क्षण कह दें हमकि ‘सवेरा हो गया?’किस पल बुझा दें हम,सब रोशनी सोने के लिये?क्या है ऐसा किताबों में,जो पढ़ नहीं सकते?आखिर किस कहानी को हम,मन में गढ़… Continue reading
-
किताब का खत्म होना- पैट्रिक मोदियानो
मैं उस पीढ़ी का हूँ जिसमें बच्चों को देखा जाता था, सुना नहीं जाता था, सुना खास मौकों पर ही जाता था वह भी पहले से अनुमति मिलने पर। लेकिन उन्हें कोई नहीं सुनता था और लोग उनके बोलने पर खुद भी बोलते रहते थे। शायद यही कारण है कि बचपन समाप्त होते होते मुझमें लिखने की… Continue reading