शरद पूर्णिमा का महत्व-
शरद पूर्णिमा, जिसे कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा भी कहते हैं; हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा को कहते हैं। ज्योतिष के अनुसार, पूरे साल में केवल इसी दिन चन्द्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। हिन्दू धर्म में इस दिन कोजागर व्रत माना गया है। इसी को कौमुदी व्रत भी कहते हैं। इसी दिन श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था। मान्यता है इस रात्रि को चन्द्रमा की किरणों से अमृत झड़ता है। तभी इस दिन उत्तर भारत में खीर बनाकर रात भर चाँदनी में रखने का विधान है।
आप सभी को शरद पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं🙏😊
अज्ञेय जी की कविता- ‘शरद चाँदनी बरसी‘
शरद चांदनी बरसी
अँजुरी भर कर पी लो
ऊँघ रहे हैं तारे
सिहरी सरसी
ओ प्रिय कुमुद ताकते
अनझिप क्षण में
तुम भी जी लो ।
सींच रही है ओस
हमारे गाने
घने कुहासे में
झिपते
चेहरे पहचाने
खम्भों पर बत्तियाँ
खड़ी हैं सीठी
ठिठक गये हैं मानों
पल-छिन
आने-जाने
उठी ललक
हिय उमगा
अनकहनी अलसानी
जगी लालसा मीठी,
खड़े रहो ढिंग
गहो हाथ
पाहुन मन-भाने,
ओ प्रिय रहो साथ
भर-भर कर अँजुरी पी लो
बरसी
शरद चांदनी
मेरा अन्त:स्पन्दन
तुम भी क्षण-क्षण जी लो !
-सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्सययन ‘अज्ञेय‘
संदर्भ- शरद पूर्णिमा – विकिपीडिया
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