‘अंधेरी कोठरियों से बात’- हिंदी कविता- PAmit Hindi Poetry

जब पहुँचा वहाँ तब अंधेरा देखा,
मैंने कोठरियों में कुछ नहीं देखा,
तम की रेखायें ही थीं,
अलग-अलग आयामों में,
उनका इतिहास बँटा होगा,
कई-कई, कई नामों में,
क्या बात मैं करता उससे,
सन्नाटे की ही गूँज थी,
क्यों बेवजह उलझता उससे,
अंधेरे का ही राज था,
पर थका नहीं, हारा नहीं मैं खड़ा रहा,
कुछ था मुझमें जो अंधेरे से बड़ा रहा,
कोशिश थी बस सुनने की,
कि क्या सन्नाटा कहता है?
संसार से होकर दूर,
क्यों अलग यह रहता है?
बहुत कुछ सुन सका मैं,
जब धीरता को बुन सका मैं।

उन कोठरियों के अस्तित्व की मुझमें,
एक धुँधली-सी स्मृति है,
जान पाया मैं जाकर वहाँ,
अंधेरा, निर्माता की बेजोड़ कृति है !

-PAmitHindi



“‘अंधेरी कोठरियों से बात’- हिंदी कविता- PAmit Hindi Poetry” के लिए प्रतिक्रिया 16

    1. आपको सहृदय धन्यवाद नीतेश मौर्य जी।

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    1. धन्यवाद अनुपाल जी।

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    1. खुशी है कि आपको यह कविता अच्छी लगी।

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    1. कोई नहीं जी, आपको शुभकामनाएं बहुत अच्छा लेखन कार्य करें आप।🙏

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    1. आपको भी शुभकामनाएं और धन्यवाद। खुश रहें, स्वस्थ रहें, सतर्क रहें। 🙏🙏

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      1. तब तो आपको गूगल ट्रांसलेट का उपयोग करना चाहिए…Google Translate का।

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  1. “बहुत कुछ सुन सका मैं,
    जब धीरता को बुन सका मैं।”

    बेहतरीन पंक्तियां

    अति उत्तम रचना 👌

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    1. सुंदर टिप्पणियाँ कविता को अधिक सुंदर बनाती हैं…इस टिप्पणी के लिये धन्यवाद।👍🌹🙏

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