दीवारों से निकली ईटें

बच्चों को खुशी है,
दीवारों से कुछ ईंटे,
छत तक जाने के लिये,
निकाली गई हैं।

दीवार को दुख नहीं,
फख्र है कि ये ईंटें,
बच्चों के लिये ही,
उसने संभाली हुई हैं।

छत को आश्चर्य है,
कि कैसी नई-नई तरकीबें,
उस तक जाने के लिये,
बना ली गई हैं।

पाठक तो आनंदित है,
कि ऐसी सुंदर-सुंदर कल्पनाएं,
कुछ समय बेचकर, कवि द्वारा
कमा ली गई हैं।



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