Hindi kavita
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‘दोस्ती’- हिंदी कविता- PAMIT HINDI POETRY
फूलों से भँवरे रूठे हैं, भँवरों के बहाने कई गज के हैं, कहते हैं कि फूल कागज के हैं। Continue reading
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‘वह पृष्ठ कोरा ही क्यों?’- हिंदी कविता- PAMIT HINDI POEMS
गंभीरतम सत्य जानने के बाद भी, वह गंभीर नहीं, पर्वतों-सी विपदाओं के आगे भी होते अधीर नहीं, कपोल-कल्पनायें भी जिनके समक्ष नतमस्तक हैं, बतलाओ मुझे, मुझमें उन कृष्ण की संभावना कहाँ तक हैं? Continue reading
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‘हिरोशिमा’-हिंदी कविता-‘अज्ञेय’
मानव का रचा हुया सूरज मानव को भाप बनाकर सोख गया। पत्थर पर लिखी हुई यह जली हुई छाया मानव की साखी है। Continue reading
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‘इतनी रंग बिरंगी दुनिया’- हिंदी कविता- ‘डॉ कुमार विश्वास’
ऐसे उजले लोग मिले जो, अन्दर से बेहद काले थे। ऐसे चतुर लोग मिले जो, मन से भोले भाले थे… Continue reading
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‘अंधेरी कोठरियों से बात’- हिंदी कविता- PAmit Hindi Poetry
जब पहुँचा वहाँ तब अंधेरा देखा, मैंने कोठरियों में कुछ नहीं देखा, तम की रेखायें ही थीं, अलग-अलग आयामों में, उनका इतिहास बँटा होगा, कई-कई, कई नामों में,… Continue reading
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‘चमत्कार’- हिंदी कविता- ‘अमृता प्रीतम’
ये भगवानों का देश है यहाँ सिर्फ चमत्कार होता है पसीना कितना भी बहा लो उसकी मर्ज़ी के बिना सब बेकार होता है अब देखो न किसान कितना भी अन्न उगा ले गरीबी ही झेलता है पर उसी अन्न को घर घर बेचने वाला रुपयों में खेलता है मज़दूर कितना भी पसीना बहा ले मज़बूर… Continue reading
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‘चुप-चाप’- हिंदी कविता- ‘अज्ञेय’
चुप-चाप चुप-चाप झरने का स्वर हम में भर जाए, चुप-चाप चुप-चाप शरद की चांदनी, झील की लहरों पर तिर आए, चुप-चाप चुप चाप जीवन का रहस्य, जो कहा न जाए, हमारी, ठहरी आँख में गहराए, चुप-चाप चुप-चाप हम पुलकित विराट में डूबें, पर विराट हम में मिल जाए… चुप-चाप चुप-चाऽऽप… Continue reading
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‘सब तुम्हारा ही है’- हिंदी कविता- PAmit Hindi Poems
मेरी कश्ती में है हौसला बहुत, कि उससे मिलने को बेक़रार, किनारा भी है कई सपने मेरे, इस सपने तले,टूटकर चूर हुए है,अब तुम जान ही लो,यह शख्स हत्यारा भी है महलों में रहता हूँ तो क्या, मन के किसी कोने में, एक खुश बंजारा भी है अधिक समेटो मत ख़ुशियाँ जहां की, सारे जहाँ… Continue reading
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‘जलते दिये से जब ये पूछा कि’-हिंदी कविता- PAmit Hindi Poems
जलते दिये से जब ये पूछा कि ‘क्या ख्याल है तुम्हारा सूरज के बारे में,’ हँसा वह, बहुत हँसा हवा संग बहने लगा, साथ रख अपनी काया का,वापस आ कहने लगा,“एक दिया है वह भी”‘क्या एक दिया है सूरज!’ “हाँ एक दिया है, है लेकिन, विशाल, आधारहीन, कायारहित, इस अखिल ब्रह्मांड के, अंधकार की प्रचंडता… Continue reading
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‘जीवन-परिधि से तुम दूर रही हो’- हिंदी कविता- PAmit Hindi Poems
अति न होगी गर कहूँ मेरे शब्द-शब्द में तुम भरपूर रही हो, जीवन ही होतीं मेरा, मगर जीवन-परिधि से तुम दूर रही हो। भाग्य रेखाओं में तो ना मिलीं पर इस चक्र के पार भी एक जहां है, तुम आना, मैं चलता हूँ, मैंने गुरु से पूछ लिया, द्वार कहाँ है! सब प्रकार की विक्षिप्तता… Continue reading
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‘धूप मीठी लगी’- हिंदी कविता- PAmit Hindi Poems
तुम्हें चलते हुए देखा, उस रोज दोपहर में, और छा गय़ी शांति, मेरे सारे शहर में।केवल जो बातें बोलीं तुमने, वह ही मुझे खट्टी लगीं,उस रोज दोपहर की,धूप मीठी लगी। सतरंगी परिधान में थी, तुम मानो आसमान में थी, नेत्रों में मैं डूब गया, पाया नहीं तुम्हें,यूँ लगा स्वयं के ही ध्यान में थींकेवल वह… Continue reading
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‘कुछ प्रश्न’- हिंदी कविता- PAmit Hindi Poems
‘काला’ होता है आखिरकितना ‘काला’?‘गोरा’ आखिर होता हैकितना ‘गोरा’?‘पूरा’ कितना ‘पूरा’ होता है?कितने ‘अँधेरे’ में ‘अँधेरे’ को रहना पड़ता है?कितनी ‘ऊँचाई’ पर ‘ऊँचे’ को चढ़ना होता है?किस क्षण कह दें हमकि ‘सवेरा हो गया?’किस पल बुझा दें हम,सब रोशनी सोने के लिये?क्या है ऐसा किताबों में,जो पढ़ नहीं सकते?आखिर किस कहानी को हम,मन में गढ़… Continue reading
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‘चींटी की राह’ – हिंदी कविता- PAmit Hindi Poems
फिर रोकी राह उसकी,कहा- ‘यहाँ से नहीं’दूसरे छोर पहुँची, तो भीकहा- ‘यहाँ से नहीं’वो पूछती रही, मुझसे“तो यहाँ से?”और मैं केवल कहता‘नहीं, यहाँ से नहीं’वो कोशिश करती रही,मेरे उत्तर को बदलने की,मैं भी जान गया,वो रुकेगी नहीं,पूछती रहेगी,ढूँढ़ निकालेगी अपनी राह,वो करती रहेगी,कोशिश अपनी। Continue reading