‘जलते दिये से जब ये पूछा कि’-हिंदी कविता- PAmit Hindi Poems

जलते दिये से जब ये पूछा कि
‘क्या ख्याल है तुम्हारा
सूरज के बारे में,’
हँसा वह, बहुत हँसा
हवा संग बहने लगा,
साथ रख अपनी काया का,
वापस आ कहने लगा,
“एक दिया है वह भी”
‘क्या एक दिया है सूरज!’
“हाँ एक दिया है, है लेकिन,
विशाल, आधारहीन, कायारहित,
इस अखिल ब्रह्मांड के,
अंधकार की प्रचंडता को,
वह भी कब कर पाता है,
समाप्त!”



“‘जलते दिये से जब ये पूछा कि’-हिंदी कविता- PAmit Hindi Poems” के लिए प्रतिक्रिया 3

  1. बहुत खूब।
    सूर्य जलता है,
    दिया और मैं भी,
    उद्देश्य सबका एक
    जग को रौशन करना
    मगर अंधेरा जाता है फिर लौट आता है,
    सृष्टि का ये चक्र शायद यूँ ही चलता रहेगा,
    दीपक है जबतक तेल शेष
    जलता रहेगा।

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