new hindi poems
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तब तब तृप्त हुआ हूँ- हिंदी कविता- PAmit Hindi Poems
जब-जब उसने कांधे पर रखकर, हाथ, कोई बात पूछी, या समय बिताने को ही बस, उसे कोई पहेली सूझी, या उसकी फूँक की हवा से मेरी, कोई चोट ठीक हुई है। तब तब तृप्त हुआ हूँ। जब-जब बच्चों के अनगढ़ मन के साथ उत्साह से खेला हूँ, या, जब किसी बच्चे का दोस्त बना, जिसने… Continue reading
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‘मैं सिक्कों में बिकना चाहता हूँ’- हिंदी कविता- PAmit Hindi Poems
मैं सिक्कों में बिकना चाहता हूँ, ताकि बच्चे भी खरीद सकें, और पा सकें वृद्ध भी, बिना नुकसान के डर के,ले सकें मेरे मन को, तपते सूरज की धूप जैसे, अपने शरीर पर ऊर्जा की तरह, ले सकें मेरे मन को,राधाकृष्ण के महारास की, उस शीतल पूर्णिमा की तरह।मैं समेटकर उन सिक्कों को, फिर उन… Continue reading
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‘मैं कविता लिखूँ गर’- हिंदी कविता- PAmit Hindi Poems
मैं कविता लिखूँ गर,तो किस पर लिखूँ। सूरज, क्या तुम पर लिखूँ,नहीं! तुम क्रोधित हो जाओगे,मुझे राख बना दोगे। चाँद, क्या तुम पर लिखूँ,नहीं! तुम्हारी चमक ही उधार हैतुम मुझे क्या दोगे! वृक्षों क्या तुम पर लिखूँ,नहीं! मानव की क्रूरता से मिटे हुए होअब और भार कितना सहोगे! पंछियों क्या तुम पर लिखूँनहीं! शायद तलाशते… Continue reading